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शिवानी रोहिला,एसोसिएट प्रोफेसर,बी.टेक सी.एस.ई,एमआईईटी,मेरठ |
ऑटिज्म एक न्यूरो डेवलपमेंटल डिसऑर्डर है जो सामाजिक और व्यावहारिक विकास को प्रभावित करता है। यह एक जटिल विकार है जो प्रत्येक बच्चे को अलग-अलग तरीके से प्रभाव में ला सकता है। पूर्ण रूप से स्वस्थ दिखने वाला आपका शिशु ऑटिज्म से ग्रस्त हो सकता है। यह विकार 12 महीने से 24 महीने की उम्र वाले शिशु में पाया जा सकता है। आटिज्म वाले लोगों में मस्तिष्क की गतिविधियां, संरचनाएं और कनेक्शंस अनोखे होते हैं। दिमागी विकास में अंतर 6 महीने की उम्र के बाद ही आने लगता है।
मेरठ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर, शिवानी रोहिला कहती हैं कि यह जरूरी है कि मां-बाप को यह पता हो, उनका बच्चा ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर से ग्रस्त है। यह जानने के लिए कुछ जरूरी लक्षणों पर ध्यान देना होगा जैसे कि लगभग 9 महीने की उम्र से एक बच्चा नियमित रूप से आंखों से संपर्क बना सकता है और अपनी देखभाल करने वालों के साथ ध्यान साझा कर सकता है। परंतु ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चा, ध्यान केंद्रित करने में असमर्थ दिखाई पड़ेगा। वह मौखिक या गैर मौखिक संकेत का उपयोग करके वस्तु के बारे में हमेशा सूचित नहीं कर पाएगा।
2017 के एक अध्ययन में पाया गया है कि ऑटिज्म विकसित कर रहे शिशु अक्सर 9 महीने की उम्र तक भी अपने नाम पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाए जबकि एक साधारण बच्चा 6 महीने से ही प्रतिक्रियाएं देना शुरू कर देता है। शोध के अनुसार लगभग 9 महीने की उम्र से एक बच्चा चीजों की ओर इशारा करता है उसे अन्य लोगों की आवाज़ और इशारे नकल करने आने चाहिए | 2019 के शोध से पता चला कि 18 महीने की उम्र में भी ऑटिस्टिक बच्चे बहुत कम इशारे या नकल कर पाते हैं वह मुस्कुराहट या अन्य चेहरे के भावों का हमेशा जवाब नहीं दे सकते।
1 साल का बच्चा, 1 से 3 शब्द कहने की क्षमता रखता है। नेशनल इंस्टीट्यूट आफ डेफ्नेस और अदर कम्युनिकेशन डिसऑर्डर्स के अनुसार, ऑटिस्टिक बच्चों को भाषा कौशल विकसित करने और अन्य लोगों द्वारा कहे गए शब्दों को समझने में कठिनाई हो सकती है। 40% ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे बिल्कुल नहीं बोलते। जो बच्चे बोल सकते हैं वे अक्सर वहीं शब्द या वाक्यांश बार-बार दोहराते हैं।
हाथों का फड़फड़ाना, झूलना, वस्तुओं को घुमाना आदि जैसा व्यवहार इन बच्चों में देखा जा सकता है। वे बच्चे एक निश्चित दिनचर्या को पसंद करते हैं और उसमें बदलाव से परेशान हो सकते हैं। वे किसी विशेष वस्तु या विषय में अत्यधिक रुचि दिखाते हैं। इन बच्चों को क्रोध अनायास ही आ सकता है। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर वाला बच्चा शोर, रोशनी, गंध या अन्य संवेदी उत्तेजनाओं के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो सकता है। कुछ बच्चों में शारीरिक विकास और मोटर स्किल्स (जैसे दौड़ना, कूदना) में देरी होती है।
कारण:- ऑटिज्म के सटीक कारण अभी भी पूरी तरह से समझे नहीं गए हैं। यह माना जाता है कि आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का संयोजन इसके विकास में भूमिका निभा रहा है।
निदान और उपचार:- ऑटिज्म का निदान आमतौर पर बच्चों के जीवन के पहले 3 वर्षों में किया जाता है। इसका कोई इलाज नहीं है लेकिन प्रारंभिक हस्तक्षेप और उपचार जैसे कि व्यावहारिक थेरेपी और शैक्षिक सहायता, बच्चों की क्षमता और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद कर सकते हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित उपकरण और एल्गोरिदम्स, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के प्रारंभिक लक्षणों को पहचानने में सहायक हैं। मशीन लर्निंग और डीप लर्निंग मॉडल बच्चों के व्यवहार संचार और सामाजिक संकेत का विश्लेषण कर सकते हैं और संभावित ऑटिज्म के संकेत को जल्दी पहचान सकते हैं।
इस अध्ययन में, शिवानी रोहिला, डॉ. महिपाल जडेजा, और डॉ. इमैनुअल एस. पिल्ली, एमएनआईटी, जयपुर ने ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर की पहचान और उसके निदान के लिए एक नवीन ग्राफ आधारित तकनीक विकसित की है। क्लस्टरिंग कोएफिशिएंट ग्राफ कनवल्यूशनल नेटवर्क तकनीक, एमआरआई डेटा का उपयोग करते हुए, रोगी के ब्रेन डेटा के नोड्स को ग्राफ में परिवर्तित करती है और इसके फीचर समानताओं के आधार पर एजेस बनाती है। यह विधि पालन-1 और पालन-2 डेटासेट पर क्रमशः 96.85% और 99.1% वर्गीकरण सटीकता प्राप्त करने में सक्षम है, जो कि अन्य समकालीन तकनीकों की तुलना में उत्कृष्ट है। इस तकनीक का उपयोग अन्य रोग वर्गीकरण कार्यों में भी किया जा सकता है।
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