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Thursday, January 18, 2024

राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर शंकराचार्यों के रुख को लेकर विपक्ष की सियासत



अयोध्या में भगवान राम के मंदिर की 22 जनवरी 2024 को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर सनातन धर्म के चारों शंकराचार्यों के रवैये को देखते हुए सियासत गरमा गई है। सच तो यह है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर चारों शंकराचार्य भी एकमत नहीं हैं। उनके बयानों में विरोधाभास दिखाई दे रहा है। दूसरी तरफ, विपक्ष विशेष रूप से देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने शंकराचार्यों के प्राण प्रतिष्ठा समारोह में न जाने के फैसले को अपना सियासी हथियार बना लिया है।

सनातन परम्परा और हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि शंकराचार्य की अहम भूमिका मानी जाती है। इसी को ध्यान में रखकर देश के चारों कोनों में चार शंकराचार्य मठ स्थापित किए गए हैं। ओडिशा के पुरी में स्थापित गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती हैं। गुजरात में द्वारका धाम में स्थापित शारदा मठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती हैं। उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में स्थापित ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद हैं और दक्षिण भारत के रामेश्वरम् में शृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ हैं।

प्राण प्रतिष्ठा में न जाने को लेकर जब विवाद बढ़ा तो श्रृंगेरी शारदा पीठ और द्वारका शारदा पीठ की तरफ से बयान सामने आया जिसमें प्राण प्रतिष्ठा के विरोध का साफ-साफ खंडन किया गया। शृंगेरी शारदा पीठ की तरफ से जारी पत्र में ऐसे प्रचार को धर्मविरोधियों का गलत प्रचार बताया गया और कहा गया है कि 500 साल बाद रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव वैभव के साथ होने वाला है। शृंगेरी पीठ के शंकराचार्य जगद्गुरु भारती तीर्थ ने अपील की कि सभी आस्तिक इस अतिपावन और दुर्लभ प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होकर प्रभु श्रीराम का कृपा पात्र बनें।

इसी तरह द्वारका शारदापीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती की तरफ से भी संदेश देकर कहा गया कि रामजन्मभूमि के बारे में कोई बयान नहीं दिया गया है। बयान में शारदापीठ ने कहा कि करीब 500 सालों बाद ये विवाद खत्म हुआ है। ये सनातनियों के लिए खुशी का मौका है। शारदापीठ रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के विधिवत संपन्न होने की कामना करता है। इसके बाद पुरी की गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भी कहा कि वो अयोध्या में होने वाले समारोह में नहीं जाएंगे। लेकिन साथ ही ये भी कहा कि उन्हें रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से कोई दिक्कत नहीं है ये तो हिंदू धर्म का एक बड़ा कार्य हो रहा है। वो तो बस ये चाहते हैं कि पूजा-पाठ विधि विधान से हो, शास्त्रों के अनुसार हो।

अब बात प्राण प्रतिष्ठा समारोह की करें तो वह पूरे विधि विधान और सनातन धर्म की परंपरा, हिंदू धर्माचार्यों द्वारा बताए गए शुभ मुहूर्त के अनुसार पूरे विधि विधान और सनातन धर्म की परंपरा को ध्यान में रखते हुए आयोजित किया जा रहा है।

विपक्ष की सियासत से जुड़े तमाम नेताओं का तर्क है कि इस समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बगैर धर्मपत्नी के कैसे यजमान की भूमिका निभा सकते हैं, जबकि पूजा पाठ या यज्ञ आदि में यजमान का सपत्नीक होना जरूरी है। शायद उन्हें मालूम नहीं है कि प्राण प्रतिष्ठा समारोह में मुख्य रूप से यजमान की भूमिका का निर्वाह रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्य डॉ. अनिल मिश्र सपत्नीक कर रहे हैं। जहां तक प्रधानमंत्री श्री मोदी का सवाल है, तो वे देश की 140 करोड़ जनता के प्रतिनिधि के रूप में प्रतीकात्मक रूप से यजमान की भूमिका निभा रहे हैं। इसके लिए भी प्रधानमंत्री श्री मोदी बनाए गए नियम संयम, उपवास आदि का पालन करते हुए एक आदर्श प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसा आदर्श जोकि आज तक किसी राजनेता ने पेश नहीं किया।

दरअसल, देश में भारतीय जनता पार्टी, केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की न केवल देश में, बल्कि पूरे विश्व में बढ़ती हुई प्रतिष्ठा से विपक्ष पूरी तरह हताश हो चुका है। उसके पास भाजपा को निशाने पर रखने के लिए कोई सियासी हथियार नहीं बचा है। यही वजह है कि उसने रामजन्म भूमि पर भगवान राम के प्राण प्रतिष्ठा समारोह को अपना सियासी हथियार बनाया है। जो विपक्ष भाजपा को यह कहकर खिल्ली उड़ाता था कि 'राम लला हम आएंगे, मंदिर कब बनाएंगे..? पता नहीं', आज राम लला का भव्य मंदिर बन जाने पर उसके पास कोई शब्द नहीं बचे हैं, जिससे वह भाजपा को नीचा दिखा सके। पहले विपक्ष का कहना था कि भाजपा रामलला के मंदिर का मुद्दा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए चुनाव के वक्त उठाती है, दरअसल मंदिर के बनने या न बनने में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं है। आज वही विपक्ष राम मंदिर के बन जाने और उसमें पीएम मोदी द्वारा भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा किए जाने से पूरी तरह हताश हो चुका है।

यही कारण है कि वह आमंत्रित किए जाने के बावजूद प्राण प्रतिष्ठा समारोह से पूरी दूरी बना रहा है। उसके पास समस्या है कि किस मुंह से वह समारोह में जाए, जबकि पहले उसके नेता अयोध्या में रामजन्मभूमि पर मंदिर न बनने देने के लिए अदालत में भी विपक्ष की भूमिका ​निभा रहे थे। बहरहाल, अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन चुका है और उसमें 22 जनवरी को भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा होगी। रही बात विपक्ष के विरोध की तो वह तो राम भरोसे है।

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