परिचालक बने दलाल, अफसरों की मिलीभगत से यात्रियों के हक पर डाका
अजय चौधरी | मेरठ। प्रदेश सरकार द्वारा आमजन की सुविधा के लिए शुरू की गई ‘एक प्रदेश-एक कार्ड’ योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। मेरठ और गाजियाबाद में इलेक्ट्रिक बस सेवा में टिकट वितरण प्रणाली में भारी अनियमितता और घोटाले का मामला उजागर हुआ है। इसमें परिचालक और संबंधित एजेंसियों के अधिकारी सरकारी राजस्व में भारी चपत लगाते पाए गए हैं।
प्रदेश के 14 जनपदों में सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक बसें संचालित की जा रही हैं, जिनमें मेरठ और गाजियाबाद को भी शामिल किया गया है। प्रत्येक जिले में 50-50 इलेक्ट्रिक बसों का संचालन किया जा रहा है। इन बसों में जेएमडी कंपनी के परिचालकों द्वारा यात्रियों को टिकट दिए जाते हैं, जबकि ईटीएम मशीन और ‘एक प्रदेश-एक कार्ड’ की आपूर्ति व रिचार्ज का जिम्मा एक अन्य कंपनी को सौंपा गया है।
सरकार द्वारा मेट्रो की तर्ज पर कॉमन मोबिलिटी कार्ड (One State-One Card) लागू किया गया था, जिससे टिकट पर यात्रियों को 10% की छूट दी जाती है। लेकिन आरोप है कि संबंधित कंपनी के कुछ अधिकारियों ने इन कार्डों को बड़ी राशि से रिचार्ज कराकर सीधे परिचालकों को सौंप दिया और इनसे टिकट बनवाकर यात्रियों के बजाय खुद लाभ उठाया।
रोजाना लाखों का घोटाला, राजस्व को लगी सेंध
सूत्रों के अनुसार, मेरठ के लोहिया नगर स्थित इलेक्ट्रिक बस डिपो में प्रतिदिन लगभग 30 से 40 परिचालकों को उच्च राशि से रिचार्ज किए गए कार्ड उपलब्ध कराए जाते थे। इन कार्डों से परिचालकों को यात्रियों के टिकट बनाने का निर्देश दिया जाता था। एक बस में सवार लगभग 50 यात्रियों में से करीब 20 के टिकट इन्हीं कार्डों से बनाए जाते थे, जिससे छूट और लाभ की राशि अधिकारियों और परिचालकों के बीच बंट जाती थी।
सरकार को मिलने वाला राजस्व निजी जेबों में जाता रहा और प्रशासन आंख मूंदे बैठा रहा। जब मामले की परतें खुलीं, तब जाकर मेरठ सिटी ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड प्रबंधन ने 20 से 25 परिचालकों को स्पष्टीकरण नोटिस जारी कर 15 दिन में जवाब मांगा है।
कुछ को बर्खास्त, कुछ अब भी ड्यूटी पर
कुछ परिचालकों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों के ‘चहेते’ परिचालक अब भी ड्यूटी कर रहे हैं, जबकि अन्य को ड्यूटी से रोक दिया गया है। कुछ ने यह भी दावा किया कि कार्ड से होने वाली गड़बड़ी की जानकारी ड्यूटी ऑफिसर और ईटीएम बाबू को दी गई थी, जिन्होंने “सब कुछ मैनेज” करने की बात कहकर परिचालकों से ऑनलाइन पैसे वसूले। इसके सबूत परिचालकों के पास होने की बात भी सामने आई है।
घोटाले से उठे कई सवाल, जांच की मांग तेज
इस घोटाले से अनेक गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं –
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शासन से कितने और किन नंबरों के कार्ड यात्रियों को बांटने को भेजे गए?
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ये कार्ड यात्रियों तक क्यों नहीं पहुंचे?
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कौन अधिकारी या एजेंसी जिम्मेदार थी और उसने अपना कर्तव्य क्यों नहीं निभाया?
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जिन कार्डों से टिकट बनाए गए, उनका हिसाब-किताब कहां गया?
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कंपनी प्रबंधन ने कई महीनों तक इस घोटाले पर संज्ञान क्यों नहीं लिया?
अब जब डिपो की आय घटने पर मामला सतह पर आया है, तब जाकर जांच की बात की जा रही है। सीसीटीवी फुटेज की जांच, डिजिटल रिकॉर्ड का विश्लेषण और ईटीएम डेटा का परीक्षण अभी बाकी है।
प्रबंधन की कार्यशैली पर उठे सवाल
यह मामला न केवल बड़े वित्तीय घोटाले की ओर इशारा करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि किस प्रकार सरकारी योजनाओं को कुछ भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा पलीता लगाया जा रहा है। अब देखना यह होगा कि सरकार इस मामले में कितनी गंभीरता दिखाती है और दोषियों पर क्या कार्रवाई की जाती है।

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