वेंक्टेश्वरा ग्रुप ऑफ विश्वविद्यालय के चेयरमैन डॉ सुधीर गिरि का गुरु पूर्णिमा पर उनके गुरुओं को संदेश
ऊँ0 श्री गुरुवे नमः
गुरु पूर्णिमा पर मेरे गुरु भगवान सिद्धेश्वर ब्रहार्षि गुरुवानन्द जी महाराज के श्री चरणों में उनके अनन्य भक्त का कृतज्ञ होकर दण्डवत प्रणाम
जब हम मनुष्य योनि में जन्म लेते है, तो प्रथम ज्ञान का बोध माँ कराती है। व्यवहारिक ज्ञान पिता देता है, जबकि श्रेष्ठ मनुष्य बनने के लिए नैतिक, शैक्षिक व आध्यात्मिक ज्ञान गुरु देता है। इसलिए इस लौकिक जगत में मानव शरीर धारण किये किसी महापुरुष/महात्मा को गुरु मानने की परम्परा सदियो से चली आ रही है।
गुरु का शाब्दिक अर्थ ’’भारी’’ होता है यानि जो ज्ञान, ध्यान, शिक्षा, संस्कार एवं पुरूषार्थ में हमसे भारी मतलब ’’श्रेष्ठ’’ हो वही गुरु होता है। गुरु को वेदो एवं पौराणिक साहित्य में इतनी महत्ता दी गयी है कि उसे ’’विष्णु’’, उसे ही ’’ब्रहमा’’ एवं उसे ही ’’महेश्वर’’ कहा गया है। गुरु देव तुल्य है एवं कई प्रसंगो में उसे भगवान से भी बढकर दर्जा दिया गया है। क्योंकि गुरु ही वो एकमात्र शक्तिपुज है, जो अपने शिष्यों/भक्तों, अनुयायियों को ब्रहमा, विष्णु, महेश से मिलाने के लिए उन्हे आत्मसात कराने का मार्ग बताते है। तभी तो पौराणिक काल से ’’प्रभुशरणम’ से पहले ’’गुरुशरणम’’ का प्रचलन है।
आज गुरु पूर्णिमा के पावन पर्व पर मुझे अपने गुरु भगवान बृहार्षि गुरुवानन्द जी महाराज से हुई 2007 में हुई प्रथम भेंट की वो पंक्तियां कृंठस्थ है। जिसमें उन्होने कहा था किः
गुरु जानिये जानि के, पानी पीजै छानि!!
बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि।।
इसका मतलब बताते हुए गुरु भगवान ने कहा था कि जिस तरह पानी को छानकर पीना चाहिये, उसी तरह किसी भी व्यक्ति को पूर्णरूपेण जानकर ही उसे गुरु बनाना चाहिये। आपके गुरु भगवान ऐसे हो जो लोभ, क्रोध, मोह, माया, भ्रम, सन्देह से ऊपर होकर आपको अज्ञानता से मुक्त कराकर ज्ञान का आलौकिक प्रकाश दे सके, मुझे अच्छी तरह याद है मेरे जीवन को पूरी तरह बदल देने वाला वर्ष 2007 का वो दिन, जिस अविस्मरणीय दिवस पर तिरूपति हवाई अडडे से हैदराबाद जाने वाली फ्लाईट रद्द होने पर मेरी परिचित सरला दीदी एवं बोथरा जी ने गुरु भगवान से मेरी प्रथम भेंट करायी थी। उस थोडी देर की मुलाकात ने मेरी पूरी जिन्दगी बदल दी।
आदरणीय मित्रो में गुरु भगवान के बारे में क्या कहूं, उन्हे महात्मा, सदात्मा, विश्वात्मा, दिव्यात्मा कहूं, मेरे गुरु भगवान तो साक्षात अजन्मे, अविनाशी परमात्मा है। आज मैं व्यक्तिगत रूप से गुरु भगवान के चरणो में उपस्थित नहीं हो सका, लेकिन मेरे गुरु भगवान हर साँस मे मेरे साथ है। उनकी अदृश्य मौजूदगी के बिना मेरे लिए जीवन की कल्पना करना भी व्यर्थ है। लौकिक जगत में जीवन के पचास बसत देखने के बाद मै पूरे आत्मविश्वास से कह सकता हूँ कि सही जीवन यात्रा तो गुरु भगवान के मेरे जीवन में आने के बाद शुरू हुई। बाकी आयु तो संख्या मात्र है।
मेरी जीवन संघर्ष यात्रा में इतने उताव-चढाव, इतनी कठिनाईयों के बीच गुरु भगवान ने हमेशा मुझे सम्भाले रखा। कई बार परेशान होने पर गुरु भगवान पर सन्देह एवं अविश्वास भी हुआ, लेकिन गुरु भगवान हमेशा मुस्कुराते हुए ज्ञान के आलौकिक प्रकाश से मुझे दिशा दिखाते रहे।
वैसे तो गुरु भगवान के अगिनत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय, अद्भुत अनुभव मेरे पास है जिस पर जो व्यक्ति गुरु भगवान को पूर्ण रूप से नहीं जानता उसे विश्वास करना मुश्किल होगा। पर एक साक्षात घटना का जिक्र में यहां जरूर करना चाहूंगा। वर्ष 2010 में एक दिन गुरु भगवान ने मुझसे कहा कि वत्स में हमेशा तेरे साथ रहूंगा, बस कभी मुझ पर सन्देह मत करना। मुम्बई में एक दोपहर समुन्द्र किनारे टहलते हुए मैने अचानक गुरु भगवान को आजमाने चाहा। मैने रेत पर चलते-2 अपनी परछाई देखी तो मेरा सिर चकरा गया, मुझे दो के बजाय चार पैर दिखायी दे रहे थे, मै डर गया और मन ही मन गुरु से क्षमा मांगने एवं कभी भी गुरु को ना आजमाने की कसम खायी। उस दिन मुझे समझ आ गया कि गुरु भगवान दिन रात हर सुख दुख मे मेरे साथ रहते है।
आदरणीय मित्रो इसी वर्ष के अन्त में मै कई भीषण समस्याओ से गुजरा, लगा कि मेरा जीवन खत्म होने को है। मैने गुरु को बहुत पुकारा, मै रोया, बहुत याद किया। पर कुछ मदद नहीं मिली। मन में फिर सन्देह के बादल उठे, बहुत खराब मन से एक अन्तिम बार फिर गुरु को आजमाने समुन्द्र किनारे गया। इस बार रेत में सिर्फ दो ही पैर दिख रहे थे। मै समझ गया कि सब भ्रम था। मुसीबत में कोई गुरु कोई भगवान नहीं होता। उसी शाम को मेरी दिल्ली में गुरु भगवान से भेंट हुई। मैने बहुत ही खिन्न मन से कहा कि आप तो कहते थे कि मै कभी भी अपने बच्चो का साथ नहीं छोड़ता। जरा सी विपत्ति आने पर आप तो विलुप्त हो गये। गुरु भगवान हंसते हुए बोले मै तेरे साथ था ही पुत्र। अरे! जिस भयानक विपत्ति की बात तुम कर रहे हो, उसमें तुम चलना तो दूर ठीक से अपने पैरो पर खडे भी नहीं हो पा रहे थे। जो दो पैर तुम्हे दिखायी दे रहे थे, वो तुम्हारे नहंी मेरे पैर थे। मैं सारी मुसीबतो से तुम्हे बचाते हुए अपनी गोद मै उठाकर चल रहा था। इतना सुनते ही मेरी आंखो से अशु धारा बह उठी। मै गुरु भगवान के चरणो में गिरकर घंटो रोता रहा । आज मन से सभी संशय, सन्देह, अन्धकार, अविश्वास दूर हो चुके थे।
आदरणीय मित्रो ऐसे असंख्य/अनगिनत सच्ची चमत्कारी घटनाएं मेरी जीवन में घटी है। मेरे विवाह उपरान्त लगभग एक दशक बाद भी पूरे विश्व में चिकित्सको, सन्त/महात्माओ यज्ञ/हवन पूजन के बाद भी सभी ने मुझे सन्तान योग के लिए मना कर दिया। गुरु भगवान ने कहा पगले तू चिन्ता मत कर। मुझे स्पष्ट दिखायी दे रहा है कि तेरे भाग्य में एक नहीं दो-2 सन्तानो का योग है। गुरु भगवान की बात बिल्कुल सच साबित हुई। भगवान के आर्शीवाद से मुझे दो-2 सन्ताने (पुत्र रत्न/पुत्री रत्न) की प्राप्ति हुई।
ऐसी हजारो घटनाऐ मेरे जीवन में घटी है आज गुरु पूर्णिमा के पुनीत पर्व पर मै मन मे पूज्य गुरु भगवान का स्मरण करते हुए कृतखता से आजीवन उनके दिखाये गये रास्ते पर चलने की शपथ लेता हँू। गुरु के प्रेम की ये पाती जिस भी मित्र तक पहुंचती है, उनसे मेरा अनुरोध है कि मेरे इन विचारो को आगे अग्रेसित करने का पुनीत कार्य कर अनुग्रहीत करें।
गुरु भगवान के चरणो में कृतज्ञता से शाँष्टांग प्रणाम।
आपका डॉ0 सुधीर गिरि
चेयरमैन, वेंक्टेश्वरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साईंसेस एवं
समूह कुलाधिपति वेंक्टेश्वरा ग्रुप ऑफ विश्वविद्यालय।
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