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Wednesday, December 30, 2020

सुभारती विश्वविद्यालय के संस्थापक डा.अतुल कृष्ण ने देशवासियों के नाम जारी विशेष संदेश में 30 दिसम्बर के इतिहास एवं इसकी महत्ता से सभी को कराया रूबरू

 

  • सुभारती विश्वविद्यालय के संस्थापक डा.अतुल कृष्ण ने देशवासियों के नाम जारी विशेष संदेश में 30 दिसम्बर के इतिहास एवं इसकी महत्ता से सभी को कराया रूबरू




बहनों और भाईयों

आज के युवा 30 दिसम्बर यानि कि आज के दिवस के सम्बन्ध में कुछ नहीं जानते। यह उनका दोष नहीं है। ये उन्हें कभी बताया ही नहीं गया और न ही कभी उन्होंने किसी पाठ्य पुस्तक में पढ़ा, न घर में चर्चा हुई और न ही किसी नेता ने अपने उद्बोधन में कहा। ये हमारे माता-पिता-शिक्षकों-नेताओं का भी दोष नहीं है क्योंकि कमोबेश वे भी इसी परिस्थिति से निकले। हमें तो सदैव ही यह बताया गया कि भारत को स्वतन्त्रता अहिंसात्मक आन्दोलन के फलस्वरूप प्राप्त हुई परन्तु सच्चाई इससे विपरीत है। भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में अहिंसात्मक आन्दोलन के योगदान को मैं नहीं नकारता परन्तु मुख्य योगदान हमारे असंख्य वीरों द्वारा दी गई कुर्बानियों का था।

क्रान्तिकारियों के सबसे बड़े अभियान का नाम था आजाद हिन्द फौज और उसके संस्थापक थे ज्ञानी प्रीतम सिंह, रास बिहारी बोस एवं जनरल मोहन सिंह। बाद में सम्पूर्ण अभियान की बागडोर नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने संभाली। नेताजी ने 21 अक्टूबर 1943 में सिगांपुर में भारत की आजादी की घोषणा की जिसे अनेकों देशों ने मान्यता दे दी थी। 21 अक्टूबर सुभारती द्वारा अखण्ड भारत के स्वतन्त्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। 21 अक्टूबर को बस एक कमी रह गई थी और वह थी कि उस समय भारत की अपनी जमीन का कोई भाग आजाद हिन्द फौज के पूर्ण अधिपत्य में नहीं था। नेताजी ने 21 अक्टूबर को ही यह घोषणा कर दी थी कि आज़ाद हिन्द फौज वर्ष 1943 समाप्त होने से पूर्व भारत की भूमि पर प्रवेश कर जाएगी। ऐसा ही हुआ। 

आज ही के दिन आज से 77 वर्ष पूर्व 30 दिसम्बर 1943 को अण्डमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर के जीमखाना मैदान जिसे आज नेताजी स्टेडियम के नाम से जाना जाता है, में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने भारत की धरती पर आजाद भारत का ध्वज फहराया। 

जापान ने अंग्रेजों को परास्त करके अण्डमान निकोबार पर 23 मार्च 1942 को अपना कब्जा कर लिया था। अण्डमान निकोबार द्वीप समूह पर अधिपत्य प्राप्त कर लेने के उपरान्त रास बिहारी बोस के द्वारा स्थापित इण्डियन इण्डिपेनेडेंस लीग ने अपनी इकाई यहाँ स्थापित की और अपना आधार बनाया। ये द्वीप ही जापान के साथ संधि के अन्तर्गत आजाद हिन्द फौज को मिले। इस दिन पोर्ट ब्लेयर में आज़ाद भारत का ध्वज फहरा कर नेता जी ने अण्डमान द्वीप का नाम शहीद द्वीप एवं निकोबार का नाम स्वराज्य द्वीप रखा था।

मैं भारत के प्रधानमंत्री मा0 श्री नरेन्द्र मोदी जी को साधुवाद देता हूँ कि उन्होंने इस अवसर के 75 वर्ष पूरा होने पर वर्ष 2018 में उसी स्थान पर ध्वजारोहण किया जिस स्थान पर वर्ष 1943 में नेताजी ने किया था। 

आइए हम आज के दिन अपने उन वीरों को याद करें जिनकी कुर्बानियों से आज हम आजादी की सांस ले पा रहे हैं। आज के दिन हम उन देशवासियों को भी श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं जो पहले अंग्रेजों की और फिर जापानियों की बर्बरता का शिकार हुए। हम शपथ लें अपने देश को इतना मजबुत बनाएँगे कि भविष्य में कभी कोई हमारी ओर आंख उठाकर भी देख न सके। 

जय हिन्द।


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